दहेज (कविता) प्रतियोगिता हेतु-12-Feb-2024
दिनांक- 12.०2.2024 दिवस- सोमवार प्रदत्त विषय- दहेज़ (कविता) प्रतियोगिता हेतु
यह दहेज़ नाम का दानव, ना जाने है कहांँ से आया। बेटी की यह खा गया खुशियांँ, बाप को इसने बिचारा बनाया।
यही वह काला जादू -टोना, जिस कारण बेटी जन्म न ली। जन्म गई तो सजी न डोली, सजा सा जीवन को जी ली।
सामाजिक क्रिया विधि प्रथा है, जिसे सहर्ष स्वीकार करें। ऐसी प्रथा को क्यों हम लाए, जो नारी का है संहार करे।
अथर्ववेद वर्णन है करता, वैदिक काल में शुरू हुई। उपहार तब रूप था इसका, अब दहेज़ रुप में करू हुई।
ख़ुशी से तब देते थे अब्बा, जिसे वहतु तब कहते थे। ना कोई था भीख मांँगता, जो मिला खुशी से गहते थे।
उपहार रूप में तो ठीक थी, कुप्रथा बन कहांँ से आईं? आ भी गई तो चलो ठीक है, क्यों इतना दुलार है पाई?
बेटी की हर ली हर सपना, हर ली अम्मा का यह चैन। कैसे बेटी विदा करूंँ मैं? तात सोचते हैं दिन-रैन।
जहांँ न नारी पूजी जाती , वहाँ देवता करें न वास। फिर सोचो धन लोभी घर में, खुशियांँ कैसे करें निवास।
इससे छुटकारा पाने का, उपाय कोई तो बतलाए। जिससे लाखों लाडली बेटियाँ, इसका ग्रास न बन पाएँ।
बहुतेरे कानून बने, सामाजिक दबाव पड़ा भरपूर। फिर भी ना यह कम हो पाया, हुआ न अब भी है यह दूर।
बातें बड़ी-बड़ी होती हैं, दिखे कहीं ना कोई काज। अपने बेटे की बात जब आई, बातें सब हुई ढाक के पात।
10 लाख बस कैश दे देना, बाराती का हो भव्य सत्कार। 10 तोला बस सोना दे देना, हमें दहेज से नहीं है प्यार।
आपकी बेटी का ही सब कुछ, अपने लिए न मांँगू मैं। राम- राम यह पाप कर्म है, इससे तो दूर ही भागूँ मैं।
इसकी आग में बेटी जलती, बनती है अपनों पर बोझ। अनपढ़ कि हम बात क्या करें, पढ़े-लिखों की भी यह सोच।
अफ़सर होगी हमरी बिटिया, मात- पिता है देखें सपना। पर क्या बिना दहेज लिए, कोई इसको लेगा अपना।
लड़के की शिक्षा की कीमत, अदा करे बेटी का बाप। इसीलिए तो घर की रौनक, बन जाती है मानो शाप।
आज वक्त कर रहा पुकार, इस कुरीति को दूर करो। घर दो घर से ना यह होगा, इस रीति को चकनाचूर करो।
घिसी- पिटी यह रीत पुरानी, क्यों इसको ले चलते हो। हम सभी तो हो गए आधुनिक, क्यों इसको नहीं बदलते हो।
बहु को ही दहेज तुम समझो, बेटी जैसा इसे प्यार करो। ना फिर इसकी हत्या होगी, कुरीति का शीघ्र संहार करो।
जब तक यह दहेज का दानव, धरती पर ज़िंदा होगा। संस्कारों की उड़ेगी धज्जी, ना आदर, मान, प्रतिष्ठा होगा।
आओ हम संकल्पित होवें, ना लेंगे, ना ही देंगे दहेज़। इसे समाज का कोढ़ समझ लें, इससे सदा करें परहेज।
जिस सुख की हम चाह हैं करते, वह सारा हमें मिल जाएगा। बंजर हिय में मीठे झरने का, कई स्रोत निकल जाएगा।
कर्म भावना जगेगी सबमें, अकर्मण्यता होगी दूर। जन,सामान्य सब हर्षित होंगे, सुख- समृद्धि होगी भरपूर।
साधना शाही, वाराणसी
Shnaya
18-Feb-2024 07:42 AM
Nice one
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चंद्रगुप्त नाथ तिवारी
14-Feb-2024 07:21 AM
उत्कृष्ट सृजन बेहतरीन अभिव्यक्ति 👌🏼👌🏼🙏🏽
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Gunjan Kamal
13-Feb-2024 09:14 PM
👌👏
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